Today is the death anniversary of Maharana Pratap: Akbar also cried on this day

Birth of Maharana Pratap-

9 मई 1540 ई में कुम्भलगढ़ उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे।उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रमऔर दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल बादशहा अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया, अंततःअकबर महाराणा प्रताप को अधीन करने मैं असफल रहा। महाराणा प्रताप की नीतियां शिवाजी महाराज से लेकर ब्रिटिश केखिलाफ बंगाल के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनीं।मेवाड़ के 13वें महाराणा थे, महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया थे।

Maharana Pratap थे,महान योद्धा

 महाराणा प्रताप का जीवन और संघर्ष इतिहासमें एक महत्वपूर्ण योद्धा के रूप में बना रहा है, और उनकी दृढ़ता और देशभक्ति ने उन्हें एक महान राजा के रूप में याद किया गया है।, मेवाड़ के बहादुर राजा, ने अपने सिद्धांतों के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता और मुगल आधिपत्य का इनकार करके अपनेवीरता और प्रतिरोध का प्रतीक बनाया। हालांकि उन्होंने सैन्य असफलताओं का सामना किया, उनकी विरासत ने अनगिनत लोगों कोस्वतंत्रता और मान्यताओं के लिए खड़ा होने की प्रेरणा दी।

महाराणा प्रताप का विशेष बंधन उनके वफादार घोड़े चेतक के साथ था, और हल्दीघाटी के युद्ध में उनकी बहादुरी का प्रतीक बना।इस युद्ध में चेतक पर सवार महाराणा प्रताप का शौर्य दिखाता है, जब उन्होंने मुगल सेना के नेता मान सिंह प्रथम के साथ युद्ध किया।

महाराणा प्रताप का जीवनकाल 1540 से 1597 तक था, और उनकी कीर्ति आज भी बनी है, खासकर हल्दीघाटी के महाकाव्य युद्धकी कहानी में। उनके योगदान ने भारतीय योद्धाओं को स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया और उन्हें महान राजा के रूप मेंयाद किया जाता है।

Death of Maharana pratap-

महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया का निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ, जब उनकी आयु 56 वर्ष थी। उनका निधन चावंड, मेवाड़ मेंहुआ और वर्तमान में यह स्थान चावंड, उदयपुर जिला, राजस्थान, स्थित है। महाराणा प्रताप का जीवन और संघर्ष इतिहास में एकमहत्वपूर्ण योद्धा के रूप में बना रहा है, और उनकी दृढ़ता और देशभक्ति ने उन्हें एक महान राजा के रूप में याद किया गया है।

Maharana Pratap

की मृत्यु  की खबर सुन अकबर भी रोया था-

अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था, पर उनकी यह लड़ाई कोई व्यक्तिगत द्वेष का परिणाम नहीं थी, बल्कि अपनेसिद्धान्तों और मूल्यों की लड़ाई थी। एक वह था जो अपने क्रूर साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था, जब की एक तरफ महाराणाप्रताप जी थे जो अपनी भारत मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर को बहुत हीदुःख हुआ क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक था और अकबर जनता था की महाराणा प्रतात जैसा वीर कोईनहीं है इस धरती पर। यह समाचार सुन अकबर रहस्यमय तरीके से मौन हो गया और उसकी आँख में आँसू गए

महाराणा प्रताप के स्वर्गावसान के समय अकबर लाहौर में था और वहीं उसे सूचना मिली कि महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई

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